सतावर या शतावरी(Asparagus Racemosus) की खेती कैसे करें

सतावर या शतावरी एक आयुर्वेदिक जड़ीबुटी है जिसका वानस्पतिक नाम एस्परागास रेस्मोसुस (Asparagus Racemosus) है। नेपाली सतावर, सतावर की ही एक खास किस्म है जिसका उत्पादन भारत और नेपाल में बड़े स्तर पर होता है क्यों की बाजार में इसका अच्छा मूल्य(market value) मिल जाता है। उष्णकटिबंधीय व उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्र इसकी खेती के लिए काफी अनुकूल होते हैं। सतावर एक बहुवर्षीय फसल है जो १८ माह से ३० माह में तैयार होती है। खेत की उर्वरक क्षमता और क्षेत्र की जलवायु स्थिति के अनुसार सतावर का प्रति हेक्टेयर उत्पादन भी भिन्न होता है। सतावर को भूमि से सूखी जड़ों के रूप में प्राप्त करके इनको  कई वर्ष 10-15 वर्ष तक स्वस्थ बना के रखा जा सकता है । अनाज की फसलों की तुलना में इस आयुर्वेदिक खेती में अधिक मुनाफा होता है और इसी कारण देश के किसान इस खेती में भी रुचि लेने लगे हैं।





१. खेती के लिए आवश्यक भूमि व जलवायु 

सर्वोत्तम भूमि दोमट या हल्की बलुई दोमट रहती है । लेकिन भूमि में उपजाऊपन होना आवश्यक है जिसका pH सूचकांक का मान ६.0-७.५ के आसपास हो । सतावर की खेती के लिए मैदानी भाग को ज्यादा उपयुक्त माना जाता है। महाराष्ट्र, गुजरात और उत्तराखंड जैसे प्रदेशों की जमीन और जलवायु सतावर की खेती के लिए काफी अनुकूल है। जुलाई से सितंबर माह तक इसे खेतों में लगाया जाता है।



२. खेती के लिए भूमि की तैयारी

खेत की सर्वप्रथम जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए जिससे घास व अन्य फसल के अवशेष मिट्टी में दबकर गल-सड़ जायें और मिट्टी बारीक हो जाए मिट्टी के ढेले ना रहें। इस् प्रकार से 4-5 जुताइयों की आवश्यकता पड़ती है । तैयार खेत की पहचान मिट्‌टी का भुरभुरा होना माना जाता है ।

३. सतावर की उन्नत किस्में

एस्पैरागस(Asparagus) की किस्में स्थानीय रूप से जो भी मिले उगाया जा सकता है । नेपाली पीली सतावर एक उन्नत किस्म है जिसमें अधिक शाखाएं निकालती हैं ।नेपाली पीली सतावर की सूखी जड़ों की दवाइयों व खाद्यपदार्थों की कंपनियों में बहुत मांग रहती है जो सूखी जड़ों का इस्तेमाल मुख्य तत्व के रूप में करती हैं। सफेद सतावर भी एक किस्म होती है लेकिन इसका बाज़ार में मूल्य काम होने की वजह से इसका उत्पादन कम होता है। बाज़ार में जहां पीली सतावर का मूल्य रुपए 200 प्रति किलोग्राम से लेके रुपए 750 प्रति किलोग्राम होता है वहीं सफेद सतावर का मूल्य रुपए 30 प्रति किलोग्राम तक ही रहता है।

४. बीज की बुवाई एवं समय 

सतावर की पौध तैयार करने के लिए बीज की बुवाई मुख्यत: मार्च - अप्रैल से शुरू हो जाती है । २०-२५ दिन के बाद बीज अंकुरित होने लगते हैं। ३ से ४ माह में पौधशाला तैयार हो जाती है तथा खेत में इन्हें जुलाई - सितंबर माह में लगाते हैं।




५. पौधों को मुख्य खेत में रोपने का ढंग

पौधों की रोपाई से पहले क्यारियों में मोटी मेढ़ बना लें और पौधों को १५ सेमी. अंदर दबा दें। पौधों को रोपते समय पौधे से पौधे की दूरी तथा पंक्ति से पंक्ति की दूरी २ फीट रखना चाहिए जिससे पौधों की वृद्धि में कोई रुकावट ना आए और पौधे वृद्धि कर बड़े पौधे तैयार हो जाएं।सिंचाई का उचित प्रबंध रहे जिससे पौधों को नमी पहुंचती रहे और वृद्धि प्रभावित ना हो।






६. खाद एवं उर्वरक की मात्रा

शतावरी एक औषधीय पौधा है अतः इसके उत्पादन में देसी खाद का इस्तेमाल किया जाता है। गोबर की सड़ी खाद १२-१५ टन प्रति हेक्टेयर देनी चाहिए तथा NPK (नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटैसियम ) या DAP ( Diammonium Phosphate) २ क्विंटल प्रति हैक्टर के हिसाब से दे सकते हैं वरना गोबर की खाद से ही काम चला सकते हैं । यह मात्रा खेत तैयारी या पौधे लगाने से 15 दिन पूर्व देनी चाहिए।

७. सिंचाई की व्यवस्था

अनाज की फसलों की तुलना में शतावरी की खेती में सिंचाई की आवश्यकता कम रहती है। सर्वप्रथम सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद देदें। गर्मियों में सिंचाई की व्यवस्था पर्याप्त रहे। सर्दियों में माह में एक बार तथा गर्मियों में १५ दिन के अंतर से सिंचाई कर सकते हैं। बरसात में जरूरत नहीं पड़ती। खेत में पानी के निकास की उचित व्यवस्था करें नहीं तो खेत में पानी भरने पर सतावर की जड़ें सड़ सकती हैं

८. फसल की निराई - गुड़ाई व मिट्टी चढ़ाना

सतावर एक बहुवर्षीय फसल है जिसकी साल में एक बार मिट्टी चढ़ाना आवश्यक है। खरपतवार होने पर निराई - गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है वरना निराई - गुड़ाई करने की जरूरत नहीं।

९. खेत की खुदाई

सतावर की जड़ों की खुदाई से पहले खेत में सिंचाई कर दें जिससे भूमि नम हो जाती है और जड़ों को भूमि से निकालने में आसानी होती है। कुदाली की सहायता से जड़ों को निकालना चाहिए। भूमि से जड़ों को निकालने के बाद उन्हें पानी में धो लें और फिर किसी बड़े बर्तन में उबाल  लें। जड़ों के उपर वाला छिलका जहरीला होता है इसलिए उबालने के बाद उसे कंद या गांठ या फिंगर से अलग कर दिया जाता है। उबली हुई छिली जड़ों या कंद को धूप में सुखाया जाता है और जब सूखकर उनका रंग पीला हो जाए तब उनका भंडारण कर लेना चाहिए।


१०. उपज

सतावर की उपज मुख्यता स्थानीय जलवायु की स्थिति और खेत की उर्वरक क्षमता पर निर्भर करती है । प्रति हेक्टेयर लगभग 250 क्विंटल सतावर की गीली जड़ें प्राप्त होती हैं। जिन्हे धोकर, उबालकर व धूप में सुखा कर सूखी जड़ों के रूप में प्राप्त करते है जिनका वजन लगभग 50 - 60 क्विंटल रह जाता है। 



११. बीमारियां एवं कीट-नियन्त्रण

सामान्यता सतावर में कीट नहीं लगते क्योंकि ये एक औषधीय पौधा है। कीट लगने पर फफूंदीनाशक दवा का स्प्रे कर सकते हैं। खेत में लागत कम आए इसके लिए किसान अरहर ,शिमला मिर्च आदि की सह फसल भी करते है ।





सतावर की खेती से जुड़ी अधिक जानकारी के लिए व सतावर की खरीद - बिक्री के लिए संपर्क करें:-
विश्वनाथ प्रताप सिंह
दूरभाष - ९७६०२८६००१/9760286001

Comments

  1. काफी महत्वपूर्ण जानकारी है।

    ReplyDelete
  2. aap iski kheti kab se kar rahe hai?

    ReplyDelete
  3. Can you supply yellow shatavari plants for plantation From your nursery

    ReplyDelete
    Replies
    1. Sorry for late reply. Yes we can supply shatavari plants anywhere. You may contact on 9760286001 any time

      Delete
  4. Replies
    1. हर्बल mandi में इसे बेच सकते है. हर्बल मंडियों की जानकारी के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर सकते है ya आप हमें 9760286001 per call भी कर सकते https://nepalishatavar.blogspot.com/2020/07/asparagus-medicinal-plants-market.html

      Delete
  5. Thanks for the info. Wholesale Supplier of Herbal Extracts wants to supply Shatavari Power

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

शतावरी (Asparagus) व अन्य औषधीय फसलों(Medicinal plants) की मंडियों(Herbal market) व मंडी भाव की जानकारी

नेपाली पीली सतावर की खेती में आय व्यय का लेखा-जोखा